जब रांची से दूर बैठी लड़की को आयी दिवाली में माँ की याद !!
प्यारी माँ,
आज पहली दफा तुमसे बात करने की हिम्मत नहीं हो रही। तुम कितनी आशा के साथ मेरे ऑफिस से आने का इंतज़ार कर रही होगी मुझे पता है। पर खबर शायद तुम्हें अच्छी ना लगे। शायद मेरी तरह, तुम भी रूआंसी हो जाओ। कैसे बताऊँ माँ की मेरी छुटियों की अर्जी नामंज़ूर हो गयी है। कैसे फ़ोन करू तुम्हें जब मुझे पता है, की मेरे सामने तुम “कोई बात नहीं” कह दोगी, पर बाद में रात भर नहीं सोओगी। कैसे कह दूं कि “मैं दिवाली पर नहीं आ रही”!
जब काम के सिलसिले में घर से पलायन किया था, तो कभी नहीं सोचा था कि इन छोटे छोटे लम्हो को दोबारा नहीं जी पाउँगी। मन कर रहा है कि दौड़ कर बचपन की तरह तुम्हारे पास आ जाऊं। एक बार फिर तुम्हारे आँचल में छुप जाऊं। छुपा लोगी ना माँ? मेरा मन परेशान है। इस बार दिवाली की सफाई कैसे करोगी माँ? कौन तुम्हें कहेगा “तुम बैठो, मैं कर देती हूं”| कौन कहेगा की मेरे होते हुए तुम्हें ये सब करने की ज़रूरत नहीं। दिवाली की मिठाईयां लाते वक़्त कौन याद रखेगा, की तुम्हे बालूशाही पसंद है? घर से दूर ये पहली दिवाली रास नहीं आएगी माँ। इस बार रंगोली कौन बनाएगा माँ? मेरा पटाखों के लिये ज़िद करने पर पिताजी का डांटना बहुत याद आएगा। तुम्हारा चुपके से पैसे दे कर मुझे कहना ‘”जाओ थोड़े से ले आओ” भी बहुत याद आएगा। मेरा शरीर यहाँ होगा, पर मन दिवार पर लगे उन लड़ियों में होगा। इस बार घर कौन सजाएगा माँ? तुम्हारा वो बार बार “बेटी ज़रा ध्यान से” कहना बहूत याद आएगा। पता है माँ, इसबार शायद दिवाली की शाम मेरा ये मन तुम्हारे बनाये पकवानों की खुश्बू में कही गुम सा होगा। बनाने के बाद किसे चखाओगी माँ? कौन उँगलियाँ चाट के कहेगा, और दोगी क्या? किसे प्यारी सी चपत लगाते हुए कहोगी, “चलो जाओ अब। शाम का इंतेज़ार करो।” मैं वहां रहूं या ना रहूँ, ध्यान तो तुम्हारी पूजन सामग्री में होगा माँ, की कहीं कुछ छूट तो नहीं गया? जो कुछ छूट गया, तो किससे कहोगी ? कौन पिताजी से छुपते छुपाते आखरी वक़्त पर तुम्हारा काम करेगा? पूजा घर में दियो के बगल में रखे उस करंज तेल की खुश्बू बहूत याद आएगी माँ। दिया जला कर घर के कोने कोने में रखना बुहत याद आएगा। तुम्हारा बार बार जा कर देखना की हवा से दिया बुझ तो नहीं गया, बहूत याद आएगा। सब लोगों के साथ लक्ष्मी माँ की पूजा करना बहूत याद आएगा। छत से आसपास के घरों को देखना बहुत याद आएगा। चकाचोंध में नहायी हुई रात, जगमग दीयों का प्रकाश, संबंधियों का आना जाना, सब बहुत याद आएगा। पड़ोस के बच्चों का पटाखे जला कर खुश होना भी बहुत याद आएगा।
दिवाली तो बीत जाएगी माँ, पर मन पुरानी यादों में रह जाएगा। दिवाली की अगली दोपहर स्वर्णरेखा नदी पर छठ घाट की सफाई करने किसे भेजोगी माँ? मन बहुत व्याकुल सा है । यकींन नहीं हो रहा की इस बार मेरी सुबह शारदा सिन्हा जी, अनुराधा पौडवाल जी के मधुर छट गीतों से नहीं होगी। की इस बार तुम्हें “कांच ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाय” गाते गुनगुनाते हुए नहीं सुन पाऊंगी। ये सब एक बुरा सपना सा लगता है माँ। तुम जब परेशान हो जाओगी, कौन तुम्हे समझाएगा, तसल्ली देगा? कौन कहेगा “चिंता मत करो माँ, पूजा अच्छे से हो जाएगी!” माफ़ करना माँ, इस बार प्रशाद बनाने में तुम्हारी मदद नहीं कर पाऊँगी। आस पास के सभी लोगो को बुलाने भी नहीं जा पाऊँगी। छठ के दौरान तुम्हारा और पूरे घर का ध्यान नहीं रख पाऊँगी । तुम अकेले सब कैसे करोगी ? बाज़ार से पिताजी के साथ पूजन सामग्री, फल और फूल कौन लाएगा माँ? तुम्हारे लाख मना करने के बाद भी, सर पे दौरा कौन उठाएगा ? याद है माँ, जब सुबह अर्घ दे कर भीगी साड़ी में तुम निकलती थी, मैं तुम्हारे पीछे पीछे भागती थी , की तुमहें ठंड ना लग जाए, और तुम आँचल से मेरा मुँह पोछते हुए कहती थी “छठी मैय्या तुम्हे खूब आशीर्वाद दे, खूब तरक्की दे”। मैं ठिठुरते हुए पीछे हट जाती थी, तो तुम प्यार से समझाती थी, की वो भीगा आँचल बड़ा पवित्र होता है। हर बार की तरह छट पूजा से जुड़ी कहानियां किसे सुनाओगी माँ?
~ Vaishali Singh