अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर एक कविता महिलाओं को समर्पित…
हूँ रूप गौरी का, तो दुर्गा का भी अवतार हूँ मैं
बिंदी कंगन झूमके पायल, इन सबसे कहीं आगे हूँ मैं ||
आसमान में उड़ने वाली आज़ाद पंछी हूँ मैं,
तुम्हारे ख्वाबों में आने वाली अप्सराओं से भी सुन्दर हूँ मैं ||
एक आग हूँ, जोश हूँ, जज़्बात हूँ, एहसास हूँ ,
तो बुलंदियों की आवाज़ हूँ मैं ।।
हूँ आँचल ममता का,
तो बहन का दुलार हूँ मैं ।।
समर्पण हूँ पत्नी का,
तो बेटी का लाड हूँ मैं ।।
सुर हूँ ताल का,
तो नृत्य का आधार हूँ मैं ।।
दुआ हूँ तुम्हारी ,
तो तुम्हारी प्रार्थनाओं का विश्वास हूँ मैं ।।
तुम्हारे आंसुओं को रोकने वाली श्रद्धा हूँ,
तो तुम्हारे होठों पर मुस्कान लेन वाली “आस्था” हूँ मैं ।।
संघर्ष हूँ जीवन का,
तो सफलता की कहानी हूँ मैं ।।
पलकों का आंसू हूँ,
तो रूह की गहराई हूँ मैं ।।
पूर्ण हूँ हर रूप में,
कभी फ़र्ज़ तो कभी कुर्बानी हूँ मैं ।।
लक्ष्मी हूँ तुम्हारे आँगन की,
तो तुम्हारे खेतों की हरियाली हूँ मैं ।।
खुद को भूलकर,
दूसरों के लिए जीने वाली कहानी हूँ मैं ।।
ताक़त हूँ तुम्हारे हाथों की,
तो तुम्हारे मन की सच्चाई हूँ मैं ।।
हूँ इज़्ज़त पिताजी की,
तो माँ की आस हूँ मैं ।।
हूँ दुलार भाई का,
तो बहन का साथ हूँ मैं ।।
ज़्यादा कुछ नहीं
एक खुला आसमान चाहिए उड़ने के लिए…
आज़ाद के इतने साल बाद भी,
एक आज़ाद जहां चाहिए रहने के लिए…
दो कदम आगे चलने वाले तो मिल जायेंगे,
एक साथी चाहिए साथ चलने के लिए…
बुझाने पर भी न बुझ पाए,
ऐसी एक मसाल चाहिए जलाने के लिए…